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उत्तराखंड का इतिहास – History of Uttarakhand in Hindi

आज के इस लेख में हम उत्तराखंड का इतिहास – History of Uttarakhand in Hindi का अध्ययन करेंगे। उत्तराखण्ड, भारत के उत्तरी भाग में स्थित है और इसे अपनी प्राकृतिक सुंदरता के लिए जाना जाता है। यह हिमालय की उत्तरी ओर से मिलता है और दक्षिणी ओर से हरित पठारों से घिरा हुआ है। उत्तर प्रदेश से अलग करके इसे 2000 में बनाया गया था और इसे “देवभूमि” या देवताओं का निवास भी कहा जाता है क्योंकि यहाँ बहुत सारे हिंदू तीर्थ स्थल और मंदिर हैं।

उत्तराखंड के इतिहास को तीन भागो में बांटा गया है  |
1. प्रागैतिहासिक  काल 
2. आधएतिहासिक काल 
3. ऐतिहासिक काल ( प्राचीन काल ,  मध्य काल , आधुनिक काल )

प्रागैतिहासिक काल

प्रागैतिहासिक काल के बारे में जानकारी हमें पाषाण कालीन उपकरण , गुफाओ , शैल चित्रों , कंकाल ,धातु उपकरण आदि से मिलती है | इस काल के कुछ प्रमुख साक्ष्य निम्नलिखित है :

लाखु गुफा –  लाखू गुफा अल्मोरा के बाड़ेछीना में स्थित है इसकी खोज 1963 में की गयी यहाँ  से मानव व पशुओ के चित्र प्राप्त हुए है जिनमे मानव को नृत्य करते दिखाया गया है तथा चित्रों को रंगों से भी सजाया गया है |

ग्वारख्या गुफा – ग्वारख्या गुफा चमोली में अलकनंदा नदी के किनारे डुग्री  गाँव में स्थित है यहाँ से मानव , भेड़ , लोमड़ी , बारहसिंगा के रंगीन चित्र मिले है |

मलारी गाँव – चमोली जिले में स्थित मलारी गाँव से गढ़वाल विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं ने सन 2002 में हजारो  वर्ष पुराने नर कंकाल , मिट्टी के बर्तन तथा एक 5.2 किलो का सोने का मुखौटे की खोज की | यहाँ से प्राप्त मिट्टी  के बर्तन पकिस्तान की स्वात घाटी के सिल्प के समान  है |

किमनी गाँव – चमोली जिले में थराली के पास स्थित किमनी गाँव से हथियार व पशुओ के शैल चित्र मिले है 

ल्वेथाप – अल्मोड़ा के ल्वेथाप से शैलचित्र प्राप्त हुए है जिनमे मानव को शिकार करते और हाथ में हाथ डालकर नृत्य करते दिखाया गया है |

बनकोट – पिथोरागढ़ के बनकोट से 8  ताम्र  मानव आकृतियाँ मिली है |

फलसीमा – अल्मोड़ा जिले के फलसीमा से योग तथा नृत्य मुद्रा वाली मानव आकृतियाँ मिली है |

हुडली – उत्तरकाशी के हुडली से नीले रंग से रंगर गए शैलचित्र मिले है |

पेटशाल – अल्मोड़ा के पेटशाल  से  कत्थई रंग की मानव आकृतियाँ मिली है |

आधऐतिहासिक काल

आधऐतिहासिक काल को पौराणिक काल भी कहा जाता है इस काल के बारे में जानकारी विभिन्न धार्मिक ग्रंथो से मिलती है | इस काल का विस्तार चतुर्थ शताब्दी से ऐतिहासिक काल तक माना जाता है  उत्तराखंड का प्रथम उल्लेख ऋग्वेद में मिलता है जिसमे इसे देवभूमि एवं मनीषियों की पुण्य भूमि कहा गया है ऐतरेव ब्राहमण में इस क्षेत्र  लिए उत्तर कुरु शब्द का प्रयोग किया गया है 

गढ़वाल क्षेत्र-

  • गढ़वाल को पहले बद्रिकाश्रम क्षेत्र, स्वर्गभूमि , तपोभूमि आदि नामो से जाना जाता था लेकिन बाद में 1515 ई . के आसपास पवार शासक अजयपाल द्वारा यहाँ के 52 गढ़ों को जीत लेने के बाद इसका नाम गढ़वाल हो गया|
  • ऋग्वेद के अनुसार यहाँ के प्राण नामक गाँव में सप्त ऋषियों  ने प्रलय के बाद अपने प्राणों की रक्षा की|
  • यहाँ के अल्कापुरी ( कुबेर की राजधानी ) नमक स्थान को आदि पूर्वज मनु का निवास स्थल कहा जाता है |
  • इस क्षेत्र के बदरीनाथ के पास स्थित गणेश , नारद , मुचकुंद , व्यास एवं स्कन्द आदि गुफाओ में वैदिक ग्रंथो की रचना की गयी थी |
  • गढ़वाल क्षेत्र के देवप्रयाग के सितोनस्यु पट्टी में सीता जी पृथ्वी में समायी थी इसी कारण यहाँ (मनसार ) में प्रतिवर्ष मेला लगता है |
  • रामायण कालीन बाणासुर की राजधानी ज्योतिश्पुर ( जोशीमठ ) थी |
  • पुलिंद रजा सुबाहु की राजधानी श्रीनगर थी |
  • प्राचीन काल में इस क्षेत्र में कण्वाश्रम व बद्रिकाश्रम नामक दो विद्यापीठ थे कण्वाश्रम दुष्यंत व सकुन्तला के प्रेम प्रसंग के कारण प्रशिद्ध है  इसी आश्रम में सम्राट भरत का जन्म हुआ था जिनके नाम पर हमारे देश का नाम भारत पड़ा |
  • कण्वाश्रम मालिनी नदी के तट पर स्थित  है महाकवि काली दास ने अभिज्ञान सकुंतलम की रचना कण्वाश्रम में ही की थी वर्तमान में इस स्थान की चौकाघाट कहा जाता है |

कुमाऊँ क्षेत्र-

  • पौराणिक ग्रंथो के अनुसार चम्पावत के पास में स्थित कान्तेश्वर पर्वत के नाम पर इसका नाम कुमाऊँ पड़ा |
  • कुमाऊँ का सर्वाधिक उल्लेख स्कंद्पुरण के मानसखंड में मिलता है 
  • ब्रह्म एवं वायु पुराण के अनुसार यहाँ किरात , किन्नर , यक्ष , गन्धर्व , नाग आदि जातियां निवास करती थी , अल्मोड़ा का जाखन देवी मंदिर यक्षो के निवास की पुष्टि करता है |
  • किरातो के वंशज अस्कोट एवं डोडीहाट नामक स्थान में निवास करते है |

ऐतिहासिक काल

ऐतिहासिक काल को तीन भागो में बांटा जा सकता है 
>> प्राचीन काल 
>> मध्य काल 
>> आधुनिक काल 

प्राचीन काल ( Ancient Period )

प्राचीन कल में उत्तराखंड पर अनेक जातियों ने शासन किया जिनमे से  कुछ प्रमुख निम्नलिखित है 

कुणिन्द शासक –    

  • कुणिन्द उत्तराखंड पर शासन करने वाली पहली राजनैतिक शक्ति थी |
  • अशोक के कालसी अभिलेख से ज्ञात होता है की कुणिन्द प्रारंभ में मौर्यों के अधीन थे |
  • कुणिन्द वंश का सबसे शक्तिशाली राजा अमोधभूति था |
  • अमोधभूति की मृत्यु के बाद उत्तराखंड के मैदानी भागो पर शको ने अधिकार कर लिया , शको के बाद  तराई वाले भागो में कुषाणों ने अधिकार कर लिया |
  • उत्तराखंड में यौधेयो के शाशन के भी  प्रमाण मिलते है इनकी मुद्राए जौनसार बाबर तथा लेंसडाउन ( पौड़ी ) से मिली है |
  • ‘ बाडवाला यज्ञ वेदिका ‘ का निर्माण शीलवर्मन नामक राजा ने किया था , शील वर्मन को कुछ विद्वान कुणिन्द व कुछ यौधेय मानते है |

कर्तपुर राज्य – 

  • कर्तपुर राज्य के संस्थापक भी कुणिन्द ही थे  कर्तपुर में उत्तराखंड , हिमांचल प्रदेश तथा रोहिलखंड का उत्तरी भाग सामिल था |
  • कर्तपुर के कुणिन्दो  को पराजित कर नागो ने उत्तराखंड पर अपना अधिकार कर लिया |
  • नागो के बाड़ कन्नोज के मौखरियो ने उत्तराखंड पर शासन किया |
  • मौखरी वंश का अंतिम शासक गृह्वर्मा था हर्षवर्धन ने इसकी हत्या करके शासन को अपने हाथ में ले लिया |
  • हर्षवर्धन के शासन काल में चीनी यात्री व्हेनसांग उत्तराखंड भ्रमण पर आया था |

कार्तिकेयपुर राजवंश –

  • हर्ष की मृत्यु के बाद उत्तराखंड पर अनेक छोटी – छोटी शक्यियो ने शासन किया , इसके पश्चात 700 ई . में कर्तिकेयपुर राजवंश की स्थापना हुइ , इस वंश के तीन से अधिक परिवारों ने उत्तराखंड पर 700 ई . से 1030 ई. तक लगभग 300 साल तक शासन किया |
  • इस राजवंश को उत्तराखंड का प्रथम ऐतिहासिक राजवंश कहा जाता है |
  • प्रारंभ में कर्तिकेयपुर राजवंश की राजधानी जोशीमठ (चमोली ) के समीप कर्तिकेयपुर नामक स्थान पर  थी बाद में राजधानी बैजनाथ (बागेश्वर ) बनायीं गयी |
  • इस वंस का प्रथम शासक बसंतदेव था बसंतदेव के बाद के राजाओ के बारे में कोई जानकारी नहीं मिलाती है इसके बाद  खर्परदेव के शासन के बारे में जानकारी मिलती है  खर्परदेव कन्नौज के राजा यशोवर्मन का समकालीन था  इसके बाद इसका पुत्र कल्याण राजा बना , खर्परदेव वंश का अंतिम शासक त्रिभुवन राज था |
  • नालंदा अभिलेख में बंगाल के पाल शासक धर्मपाल द्वारा गढ़वाल पर आक्रमण करने की जानकारी मिलती है इसी आक्रमण के बाद कार्तिकेय राजवंश में खर्परदेव वंश के स्थान पर निम्बर वंश की स्थापना हुई , निम्बर ने जागेश्वर में विमानों का निर्माण करवाया था 
  • निम्बर के बाद  उसका पुत्र इष्टगण शासक बना उसने समस्त उत्तराखंड को एक सूत्र में बांधने का प्रयास किया था जागेश्वर में नवदुर्गा , महिषमर्दिनी , लकुलीश तथा नटराज मंदिरों का निर्माण कराया |
  • इष्टगण के बाद  उसका पुत्र ललित्शूर देव शासक बना तथा ललित्शूर देव के बाद  उसका पुत्र भूदेव शासक बना इसने बौध धर्मं का विरोध किया तथा बैजनाथ मंदिर निर्माण में सहयोग दिया |
  • कर्तिकेयपुर राजवंश में सलोड़ादित्य के पुत्र इच्छरदेव ने  सलोड़ादित्य वंश की स्थापना की 
  • कर्तिकेयपुर शासनकाल में आदि गुरु शंकराचार्य उत्तराखंड आये उन्होंने बद्रीनाथ व केदारनाथ मंदिरों का पुनरुद्धार कराया | सन 820 ई . में केदारनाथ में उन्होंने अपने प्राणों का त्याग किया |
  • कर्तिकेयपुर शासको की राजभाषा संस्कृत तथा लोकभाषा पाली थी |

मध्य काल (Medieval Period)

मध्यकाल के इतिहास में हम कत्यूरी शासन , चन्द वंश तथा गढ़वाल के परमार (पवांर ) वंश के बारे में अध्ययन करेंगे |

कत्यूरी वंश 

  • मध्यकाल में कुमाऊं में कत्यूरियों का शासन था इसके बारे में जानकारी हमें स्थानीय लोकगाथाओं व जागर से मिलती है कर्तिकेयपुर वंश के बाद कुमाऊं में कत्यूरियों का शासन हुआ |
  • सन् 740 ई. से 1000 ई. तक गढ़वाल व कुमाऊं पर कत्यूरी वंश के तीन परिवारों का शासन रहा , तथा इनकी राजधानी कर्तिकेयपुर (जोशीमठ) थी|
  •  आसंतिदेव ने कत्यूरी राज्य में आसंतिदेव वंश की स्थापना की और अपनी राजधानी जोशीमठ से रणचुलाकोट में स्थापित की |
  • कत्यूरी वंश का अंतिम शासक ब्रह्मदेव था यह एक अत्याचारी शासक था जागरो में इसे वीरमदेव कहा गया है|
  • जियारानी की लोकगाथा के अनुसार 1398 में तैमूर लंग ने हरिद्वार पर आक्रमण किया और ब्रह्मदेव ने उसका सामना किया और इसी आक्रमण के बाद कत्यूरी वंश का अंत हो गया|
  • 1191 में पश्चिमी नेपाल के राजा अशोकचल्ल ने कत्यूरी राज्य पर आक्रमण कर उसके कुछ भाग पर कब्ज़ा कर लिया|
  • 1223 ई. में नेपाल के शासक  काचल्देव  ने   कुमाऊॅ पर आक्रमण कर लिया और कत्यूरी शासन को अपने अधिकार में ले लिया।

कुमाऊं का चन्द वंश

  • कुमाऊं में चन्द वंश का संस्थापक सोमचंद था जो 700 ई. में गद्दी पर बैठा  था|
  • कुमाऊं में चन्द और कत्यूरी प्रारम्भ में समकालीन थे और उनमें सत्ता के लिए संघर्ष चला जिसमें अन्त में चन्द विजयी रहे। चन्दों ने चम्पावत को अपनी राजधानी बनाया। प्रारंभ में चम्पावत के आसपास के क्षेत्र ही इनके अधीन थे लेकिन बाड़ में वर्तमान का नैनीताल, बागेश्वर, पिथौरागढ़, अल्मोड़ा आदि क्षेत्र इनके अधीन हो गए|
  • राज्य के विस्तृत हो जाने के कारण भीष्मचंद ने राजधानी चम्पावत से अल्मोड़ा स्थान्तरित कर दी जो कल्यांचंद तृतीय के समय (1560) में बनकर पूर्ण हुआ|
  • इस वंश का सबसे शक्तिशाली राजा गरुड़ चन्द था|
  • कल्याण चन्द चतुर्थ के समय में कुमाऊं पर रोहिल्लो का आक्रमण हुआ| तथा प्रशिद्ध कवी ‘शिव’ ने कल्याण चंद्रौदयम की रचना की|
  • चन्द शासन काल में ही कुमाऊं में ग्राम प्रधान की नियुक्ति तथा भूमि निर्धारण की प्रथा प्रारंभ हुई|
  • चन्द राजाओ का राज्य चिन्ह गाय थी|
  • 1790 ई. में नेपाल के गोरखाओं ने चन्द राजा महेंद्र चन्द को हवालबाग के युद्ध में पराजित कर कुमाऊं पर अपना अधिकार कर लिया , इसके सांथ ही कुमाऊं में चन्द राजवंश का अंत हो गया|

गढ़वाल का परमार (पंवार) राजवंश

  • 9 वीं शताब्दी तक गढ़वाल में 54 छोटे-बड़े ठकुरी शासको का शासन था, इनमे सबसे शक्तिशाली चांदपुर गड  का राजा भानुप्रताप था , 887 ई. में धार (गुजरात) का शासक कनकपाल तीर्थाटन पर आया, भानुप्रताप ने इसका स्वागत किया और अपनी बेटी का विवाह उसके साथ कर दिया।
  • कनकपाल द्वारा 888 ई. में चाँदपुरगढ़ (चमोली) में परमार वंश की नींव रखीं, 888 ई. से 1949 ई. तक परमार वंश में कुल 60 राजा हुए।
  • इस वंश के राजा प्रारंभ में कर्तिकेयपुर राजाओ के शामंत रहे लेकिन बाड़ में स्वतंत्र राजनेतिक शक्ति के रूप  में स्थापित हो गए|
  •  इस वंश के 37वें राजा अजयपाल ने सभी गढ़पतियों को जीतकर गढ़वाल भूमि का एकीकरण किया। इसने अपनी राजधानी  चांदपुर गढ को पहले देवलगढ़ फिर 1517 ई. में श्रीनगर में स्थापित किया।
  • परमार शासकों को लोदी वंश के शासक बहलोद लोदी ने शाह की उपाधि से नवाजा , सर्वप्रथम बलभद्र शाह ने अपने नाम के आगे शाह जोड़ा|
  • 1636 ई. में मुग़ल सेनापति नवाजतखां ने दून-घाटी पर हमला कर दिया ओर उस समय की गढ़वाल राज्य की संरक्षित महारानी कर्णावती ने अपनी वीरता से मुग़ल सैनिको को पकडवाकर उनके नाक कटवा दिए , इसी घटना के बाद महारानी कर्णावती को “नाककटी रानी” के नाम से प्रसिद्ध हो गयी।
  • परमार राजा प्रथ्विपति शाह ने मुग़ल शहजादा दाराशिकोह के पुत्र शुलेमान शिकोह को आश्रय दिया था इस बात से औरेंजेब नाराज हो गया था|
  • 1790 ई. में कुमाऊॅ के चन्दो को पराजित कर, 1791 ई. में गढ़वाल पर भी आक्रमण किया लेकिन पराजित हो गए। गढ़वाल के राजा ने गोरखाओं से संधि के तहत 25000 रूपये का वार्षिक कर लगाया और वचन लिया की ये पुन: गढ़वाल पर आक्रमण नहीं करेंगे , लेकिन 1803 ई. में अमर सिंह थापा और हस्तीदल चौतरिया के नेतृत्व में गौरखाओ ने भूकम से ग्रस्त गढ़वाल पर आक्रमण कर उनके काफी भाग पर कब्ज़ा कर लिया।
  •   14 मई 1804 को देहरादून के खुड़बुड़ा मैदान में गोरखाओ से हुए युद्ध में प्रधुमन्न  शाह की मौत हो गई , इस प्रकार सम्पूर्ण गढ़वाल और कुमाऊॅ में नेपाली गोरखाओं का अधिकार हो गया।
  • प्रधुमन्न  शाह के एक पुत्र कुंवर प्रीतमशाह को गोरखाओं ने बंदी बनाकर काठमांडू भेज दिया, जबकि दुसरे पुत्र सुदर्शनशाह हरिद्वार में रहकर स्वतंत्र होने का प्रयास करते रहे और उनकी मांग पर अंग्रेज गवर्नर जनरल लार्ड हेस्टिंग्ज ने अक्तूबर 1814 में गोरखा के विरुद्ध अंग्रेज सेना भेजी और 1815 को गढ़वाल को स्वतंत्र कराया  , लेकिन अंग्रेजों को लड़ाई का खर्च न दे सकने के कारण गढ़वाल नरेश को समझौते में अपना राज्य अंग्रेजों को देना पड़ा।
  • शुदर्शन शाह  ने 28 दिसम्बर 1815 को अपनी राजधानी श्रीनगर से टिहरी गढ़वाल  स्थापित  की। टिहरी राज्य पर राज करते रहे तथा भारत में विलय के बाद टिहरी राज्य को 1 अगस्त 1949 को उत्तर प्रदेश का एक जनपद बना दिया गया।
  • पंवार शासको के काल में अनेक काव्य रचे गए जिनमे सबसे प्राचीन मनोदय काव्य है जिसकी रचना भरत कवि ने की थी|

आधुनिक काल (Modern Period)

उत्तराखंड के आधुनिक काल के इतिहास में हम गोरखा शासन तथा ब्रिटिश शासन के बारे में अध्ययन करेंगे|

गोरखा शासन

  • गोरखा नेपाल के थे , गोरखाओ ने चन्द राजा को पराजित कर 1790 में अल्मोड़ा पर अधिकार कर लिया|
  • कुमाऊॅ  पर अधिकार करने के बाद 1791 में गढ़वाल पर आक्रमण किया लेकिन पराजित हो गये और फरवरी 1803 को संधि के विरुद्ध जाकर गोरखाओं ने अमरसिंह थापा और हस्तीदल चौतारिया के नेतृत्व में  पुन: गढ़वाल पर आक्रमण किया और सफल हुए।
  • 14 मई 1804 को गढ़वाल नरेश प्रधुम्न्ना शाह और गोरखों के बीच देहरादून के खुडबुडा मैदान में युद्ध हुआ और गढ़वाल नरेश शहीद हो गए|
  • 1814  ई. में  गढ़वाल में अंग्रेजो के साथ युद्ध में पराजित हो कर गढ़वाल राज मुक्त हो गया, अब  केवल कुमाऊॅ  में गोरखाओं का शासन रह गया|
  • कर्नल निकोल्स  और  कर्नल गार्डनर  ने अप्रैल  1815 में कुमाऊॅ के अल्मोड़ा को व जनरल ऑक्टरलोनी  ने 15, मई  1815 को वीर गोरखा सरदार अमर सिंह थापा  से मालॉव का किला जीत लिया।
  • 27 अप्रैल  1815 को कर्नल गार्डनर तथा गोरखा शासक बमशाह के बीच हुई संधि के तहत कुमाऊॅ की सत्ता अंग्रेजो को सौपी दी गई। 
  • कुमाऊॅ व गढ़वाल में गोरखाओं का शासन काल क्रमश: 25 और 10.5 वर्षों तक रहा।जो  बहुत ही अत्याचार पूर्ण था  इस अत्चयारी शासन को गोरख्याली कहा जाता है|

ब्रिटिश शासन

  • अप्रैल   1815 तक कुमाऊॅ पर अधिकार करने के बाद अंग्रेजो ने टिहरी को छोड़ कर अन्य सभी क्षेत्रों को नॉन रेगुलेशन   प्रांत बनाकर उत्तर पूर्वी प्रान्त का भाग  बना दिया, और इस क्षेत्र का प्रथम कमिश्नर कर्नल गार्डनर  को नियुक्त किया।
  • कुछ समय बाड़ कुमाऊँ जनपद का गठन किया गया और देहरादून को 1817 में सहारनपुर जनपद में सामिल किया गया|
  • 1840 में ब्रिटिश गढ़वाल के मुख्यालय   को श्रीनगर से हटाकर पौढ़ी लाया गया व पौढ़ी गढ़वाल नामक नये जनपद का गठन किया।
  • 1854 में कुमाऊँ मंडल का मुख्यालय नैनीताल बनाया गया 
  • 1891 में कुमाऊं को अल्मोड़ा व नैनीताल नामक दो जिलो में बाँट दिया गया, और स्वतंत्रता तक कुमाऊॅ में केवल 3 ही ज़िले थे (अल्मोड़ा, नैनीताल, पौढ़ी गढ़वाल) और टिहरी गढ़वाल एक रियासत के रूप में थी
  • 1891 में उत्तराखंड से नॉन रेगुलेशन प्रान्त सिस्टम को समाप्त कर  दिया गया|
  • 1902 में सयुंक्त प्रान्त आगरा एवं अवध का गठन हुआ और उत्तराखंड को इसमें सामिल कर दिया गया|
  • 1904 में नैनीताल गजेटियर में उत्तराखंड को हिल स्टेट का नाम दिया गया|

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