
उत्तराखंड के वन
- उत्तराखंड में वन सम्पदा का अतुल भंडार है नवीनतम आंकड़ो के अनुसार उत्तराखंड में 34,650 वर्ग किमी में वनों का विस्तार है
- उत्तराखंड में 600-1200 मीटर ऊंचाई वाले क्षेत्रो में वनों का प्रतिशत 16.3 तथा 1200 से 1800 मीटर ऊंचाई वाले क्षेत्रो में 22.3 प्रतिशत तथा 1800 से 3000 मीटर ऊंचाई वाले क्षेत्रो में सर्वाधिक 22.3 प्रतिशत वन है और 3000 मीटर से ऊंचाई वाले क्षेत्रो में केवल 7.5 प्रतिशत वन क्षेत्र है|
- 14 वे वन रिपोर्ट के अनुसार राज्य के कुल क्षेत्रफल के 46.73 प्रतिशत भाग पर वन है इसमें से 19.61 % भाग पर अति सघन वन , 56.11% भाग पर मध्यम सघन वन व 24.27% भाग पर खुले वन है
- उत्तराखंड में कुल वनों के 49.63 % आरक्षित वन , 18.48 % संरक्षित वन तथा 2.93 % अवर्गीकृत वनों के अंतर्गत आते है|
- उत्तराखंड में सर्वाधिक वन क्षेत्रफल पौड़ी गढ़वाल जिले में तथा सबसे कम वें क्षेत्रफल उधम सिंह नगर में है|
- उत्तराखंड में सबसे अधिक सघन वन नैनीताल में , सबसे अधिक मध्यम सघन वन पौड़ी तथा सर्वाधिक खुले वन पौड़ी जनपद में है|
- राज्य में कुल वनों का 59.70% गढ़वाल मण्डल में तथा 40.30 % कुमाऊं मण्डल में है|
- उत्तराखंड में नदी बेसिनो के कुल क्षेत्रफल में वनों के क्षेत्रफल की दृष्टि से सर्वाधिक वन टोंस बेसिन में है
- उत्तराखंड में कुल वन क्षेत्रफल का 70.46 % वन विभागाधीन , 13.76 % राजस्व विभागाधीन , 15.32 प्रतिशत वन पंचायाताधीन तथा .46 % निजी वन है
उत्तराखंड में पाये जाने वाले वनों के प्रकार
1.उपोष्ण कटिबन्धीय वन
ये वन 750 से 1200 मीटर की ऊंचाई पर पाये जाते है साल इन वनों का प्रमुख वृक्ष है इसमें उत्तराखंड का उप हिमालय क्षेत्र आता है
2.उष्ण कटिबन्धीय शुष्क वन
ये वन 1500 मीटर ऊंचाई से कम वाले ऐसे क्षेत्रो में पाये जाते है जहा वर्षा कम होती है , इन वनों की मुख्य वृक्ष जामुन , गूलर, ढाक आदि है
3.उष्ण कटिबन्धीय आद्र पतझड़ वन
ये वन शिवालिक क्षेत्रो तथा दून क्षेत्रो में पाये जाते है इन्हें मानसूनी वन भी कहते है इन वनों की मुख्या प्रजातियाँ सागौन, शहतूत, साल , बांस आदि है
4. कोणधारी वन
ये वन 900-1800 मीटर ऊंचाई पर पाये जाते है , चीड़ इनका मुख्या वृक्ष है
5. पर्वतीय शीतोष्ण वन
ये वन 1800-2700 मीटर की ऊंचाई पर पाये जाते है चीड़, देवदार, स्प्रूस, फर आदि इनके मुख्या वृक्ष है
6. उप एल्पाइन तथा एल्पाइन वन
ये वन 2700 मीटर से अधिक ऊंचाई पर मिलते है बुरांश,पाइन , फर, देवदार इनकी मुख्या प्रजातियाँ है
7. घास के मैदान (बुग्याल )
मध्य हिमालय में 3800 से 4200 मीटर की ऊंचाई पर घास के मैदान पाये जाते है इन्हें बुग्याल कहा जाता है
उत्तराखंड में वनों से सम्बंधित आन्दोलन
उत्तराखंड में वनों के संरक्षण के लिए कई जन आन्दोलन हुए जिनमे से कुछ प्रमुख निम्नलिखित है
चिपको आन्दोलन (Chipako movemen)
चिपको आन्दोलन की शुरुआत 1972 से चली आ रही वनों की अंधाधुन्द कटाई को रोकने के लिए चमोली जिले के गोपेश्वर से 23 वर्षीय महिला गौरा देवी द्वारा 1974 में की गयी , इस आन्दोलन में वनों को काटने से बचाने के लिए ग्रामवासी वृक्षों से चिपक जाते थे इसी लिए इस आन्दोलन का नाम चिपको आन्दोलन पड़ा |
चिपको आन्दोलन को विश्व स्थर पर पहचान दिलाने में सुन्दरलाल बहुगुणा और चंडी प्रसाद भट्ट ने महत्वपूर्ण भूमिका निभायी, इस आन्दोलन के लिए चंडी प्रसाद भट्ट को 1982 में रेमन मैग्सेसे पुरष्कार दिया गया
इस आन्दोलन के दौरान सुन्दरलाल बहुगुणा ने ‘हिमालय बचाओ देश बचाओ‘ का नारा दिया
रंवाई आन्दोलन
टिहरी में राजा मानवेन्द्र शाह के समय में एक कानून बनाया गया जिसके अंतर्गत किसानो की भूमि को वन भूमि में सामिल करने की बात की गयी , इस व्यस्था के खिलाप टिहरी की जनता ने आन्दोलन शुरू कर दिया , जिसमे 30 मई 1930 को दीवान चक्रधर जुयाल की आज्ञा से सेना द्वारा चलायी गोलियों से अनेक आन्दोलनकारी शहीद हो गए , इस क्षेत्र में आज भी 30 मई को शहीद दिवस मनाया जाता है
रंवाई आन्दोलन को तिलाड़ी आन्दोलन के नाम से भी जाना जाता है
डूंगी – पैंतोली आन्दोलन
यह आन्दोलन चमोली जनपद में बांज के जंगल काटने के विरोध में हुआ
पाणी राखो आन्दोलन
यह आन्दोलन पौड़ी जनपद के उफरेंखाल गाँव में पानी की कमी को दूर करने के लिए चलाया गया, इस आन्दोलन के परिणाम स्वरुप पानी की कमी से बंजर भूमि पुनः हरी भरी हो गयी
इस आंदोलन के सूत्रधार यहाँ के शिक्षक सच्चिदानंद भारती थे जिन्होंने ‘ दूधातोली लोक विकास संस्थान‘ का गठन किया
मैती आन्दोलन
मैती आन्दोलन की शुरुआत 1996 में कल्याण सिंह रावत द्वारा गयी , इस आन्दोलन के तहत विवाह के दौरान वर-वधु द्वारा एक पौधा लगाया जाता है तथा बाद में मायके वाले उस पौधे की देखभाल करते है
रक्षा सूत्र आन्दोलन
यह आन्दोलन 1944 में टिहरी से शुरू हुआ इसके तहत वृक्ष पर रक्षा सूत्र बाँध कर उसकी रक्षा करने का संकल्प लिया जाता है
1977 का वन आन्दोलन
1977 में वनों की नीलामी के विरोध में आन्दोलन हुआ , इस आन्दोलन के दौरान 1978 में पहली बार उत्तराखंड बंद हुआ
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