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उत्तराखंड में वनों से सम्बंधित आन्दोलन

उत्तराखंड में वनों से सम्बंधित आन्दोलन

उत्तराखंड सामान्य ज्ञान

उत्तराखंड में वनों से सम्बंधित आन्दोलन

उत्तराखंड में वनों के संरक्षण के लिए कई जन आन्दोलन हुए जिनमे से कुछ प्रमुख निम्नलिखित है

चिपको आन्दोलन (Chipako movemen)

चिपको आन्दोलन की शुरुआत 1972 से चली आ रही वनों की अंधाधुन्द कटाई को रोकने के लिए चमोली जिले के गोपेश्वर से 23 वर्षीय महिला गौरा देवी द्वारा 1974 में की गयी , इस आन्दोलन में वनों को काटने से बचाने के लिए ग्रामवासी वृक्षों से चिपक जाते थे इसी लिए इस आन्दोलन का नाम चिपको आन्दोलन पड़ा |
चिपको आन्दोलन को विश्व स्थर पर पहचान दिलाने  में सुन्दरलाल बहुगुणा और चंडी प्रसाद भट्ट ने महत्वपूर्ण भूमिका निभायी, इस आन्दोलन के  लिए चंडी प्रसाद भट्ट को 1982 में रेमन मैग्सेसे पुरष्कार दिया गया
इस आन्दोलन के दौरान सुन्दरलाल बहुगुणा ने ‘हिमालय बचाओ देश बचाओ‘ का नारा दिया

रंवाई आन्दोलन

टिहरी में राजा मानवेन्द्र शाह के समय में एक कानून बनाया गया जिसके अंतर्गत किसानो की भूमि को वन भूमि में सामिल करने की बात की गयी , इस व्यस्था के खिलाप टिहरी की जनता ने आन्दोलन शुरू कर दिया , जिसमे 30 मई 1930 को दीवान चक्रधर जुयाल की आज्ञा से  सेना द्वारा चलायी गोलियों से अनेक आन्दोलनकारी शहीद हो गए , इस क्षेत्र में आज भी 30 मई को शहीद दिवस मनाया जाता है
रंवाई आन्दोलन को तिलाड़ी आन्दोलन के नाम से भी जाना जाता है

डूंगी – पैंतोली आन्दोलन

यह आन्दोलन चमोली जनपद में बांज के जंगल काटने के विरोध में हुआ

पाणी राखो आन्दोलन

यह आन्दोलन पौड़ी जनपद के उफरेंखाल गाँव में पानी की कमी को दूर करने के लिए चलाया गया, इस आन्दोलन के परिणाम स्वरुप पानी की कमी से बंजर भूमि पुनः हरी भरी हो गयी
इस आंदोलन के सूत्रधार यहाँ के शिक्षक सच्चिदानंद भारती थे जिन्होंने ‘ दूधातोली लोक विकास संस्थान‘ का गठन किया

मैती आन्दोलन

मैती आन्दोलन की शुरुआत 1996 में कल्याण सिंह रावत द्वारा  गयी , इस आन्दोलन के  तहत विवाह  के दौरान वर-वधु द्वारा एक पौधा लगाया जाता है तथा बाद में मायके वाले उस पौधे की देखभाल करते है 

रक्षा सूत्र आन्दोलन

यह आन्दोलन 1944  में टिहरी से शुरू हुआ इसके तहत वृक्ष पर रक्षा सूत्र बाँध कर उसकी रक्षा करने का संकल्प लिया जाता है 

1977  का वन आन्दोलन

1977 में वनों की नीलामी के विरोध में आन्दोलन हुआ , इस आन्दोलन के दौरान 1978 में पहली बार उत्तराखंड बंद हुआ

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