उत्तराखंड का इतिहास भाग – 2 (Uttarakhand History Part -2)
आधऐतिहासिक काल –
>> आधऐतिहासिक काल को पौराणिक काल भी कहा जाता है इस काल के बारे में जानकारी विभिन्न धार्मिक ग्रंथो से मिलती है | इस काल का विस्तार चतुर्थ शताब्दी से ऐतिहासिक काल तक माना जाता है
>>उत्तराखंड का प्रथम उल्लेख ऋग्वेद में मिलता है जिसमे इसे देवभूमि एवं मनीषियों की पुण्य भूमि कहा गया है
>>ऐतरेव ब्राहमण में इस क्षेत्र लिए उत्तर कुरु शब्द का प्रयोग किया गया है
>>स्कन्दपुराण में 5 हिमालयी खंडो (केदारखंड , मानसखंड , नेपाल , जालंधर तथा कश्मीर ) का उल्लेख है जिनमे से दो केदारखंड (गढ़वाल ) तथा मानसखंड (कुमाऊ ) उत्तराखंड में स्थित है |
>>पुराणों में केदारखंड व मानसखंड के संयुक्त क्षेत्र के लिए उत्तर-खंड, खसदेश एवं ब्रह्मपुर आदि नामो का प्रयोग किया गया है
>>बौध साहित्य के पाली भाषा वाले ग्रंथो में उत्तराखंड के लिए हिमवंत शब्द प्रयुक्त किया गया है |
गढ़वाल क्षेत्र-
- गढ़वाल को पहले बद्रिकाश्रम क्षेत्र, स्वर्गभूमि , तपोभूमि आदि नामो से जाना जाता था लेकिन बाद में 1515 ई . के आसपास पवार शासक अजयपाल द्वारा यहाँ के 52 गढ़ों को जीत लेने के बाद इसका नाम गढ़वाल हो गया|
- ऋग्वेद के अनुसार यहाँ के प्राण नामक गाँव में सप्त ऋषियों ने प्रलय के बाद अपने प्राणों की रक्षा की|
- यहाँ के अल्कापुरी ( कुबेर की राजधानी ) नमक स्थान को आदि पूर्वज मनु का निवास स्थल कहा जाता है |
- इस क्षेत्र के बदरीनाथ के पास स्थित गणेश , नारद , मुचकुंद , व्यास एवं स्कन्द आदि गुफाओ में वैदिक ग्रंथो की रचना की गयी थी |
- गढ़वाल क्षेत्र के देवप्रयाग के सितोनस्यु पट्टी में सीता जी पृथ्वी में समायी थी इसी कारण यहाँ (मनसार ) में प्रतिवर्ष मेला लगता है |
- रामायण कालीन बाणासुर की राजधानी ज्योतिश्पुर ( जोशीमठ ) थी |
- पुलिंद रजा सुबाहु की राजधानी श्रीनगर थी |
- प्राचीन काल में इस क्षेत्र में कण्वाश्रम व बद्रिकाश्रम नामक दो विद्यापीठ थे कण्वाश्रम दुष्यंत व सकुन्तला के प्रेम प्रसंग के कारण प्रशिद्ध है इसी आश्रम में सम्राट भरत का जन्म हुआ था जिनके नाम पर हमारे देश का नाम भारत पड़ा |
- कण्वाश्रम मालिनी नदी के तट पर स्थित है महाकवि काली दास ने अभिज्ञान सकुंतलम की रचना कण्वाश्रम में ही की थी वर्तमान में इस स्थान की चौकाघाट कहा जाता है |
कुमाऊँ क्षेत्र-
- पौराणिक ग्रंथो के अनुसार चम्पावत के पास में स्थित कान्तेश्वर पर्वत के नाम पर इसका नाम कुमाऊँ पड़ा |
- कुमाऊँ का सर्वाधिक उल्लेख स्कंद्पुरण के मानसखंड में मिलता है
- ब्रह्म एवं वायु पुराण के अनुसार यहाँ किरात , किन्नर , यक्ष , गन्धर्व , नाग आदि जातियां निवास करती थी , अल्मोड़ा का जाखन देवी मंदिर यक्षो के निवास की पुष्टि करता है |
- किरातो के वंशज अस्कोट एवं डोडीहाट नामक स्थान में निवास करते है |
प्रमुख लेख –
- देहरादून के कालसी नामक स्थान में अशोक द्वारा 257 ई . पू. में पाली भाषा में स्थापित अभिलेख है , कालसी अभिलेख में यहाँ के निवासियों के लिए पुलिंद तथा इस क्षेत्र के लिए आपरांत शब्द का प्रयोग किया गया है |
- देहरादून के लाखामंडल से राजकुमारी इश्वरा का शिलालेख मिला है
Uttarakhand History
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